Tuesday, October 21, 2025
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मुस्लिम लड़कियों के स्कूल और कॉलेज जाने में कितनी हुई बढ़ोतरी? रिपोर्ट में हुआ खुलासा…

कर्नाटक से उठा हिजाब का विवाद (Karnataka Hijab Controversy) आजकल सुर्खियों में है. सवाल उठ रहे हैं कि हिजाब पहनकर स्कूल पहुंची लड़कियों को रोका जाना सही है या गलत. मामला अदालत की चौखट तक पहुंच गया है. लेकिन एक पहलू है, जिसकी तरफ भी ध्यान दिया जाना चाहिए. और ये पहलू है शिक्षा में मुस्लिम बच्चों (Muslim education) की भागीदारी का.देश में मुस्लिम लड़कियों (Muslim Girls) के स्कूलों और कॉलेजों में जाने की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है. 2007-08 और 2017-18 के बीच, भारत में उच्च शिक्षा में मुस्लिम महिलाओं का अटेंडेंस रेश्यू (GAR) 6.7 प्रतिशत से बढ़कर 13.5 प्रतिशत हो गया. ये इजाफा कॉलेज जाने वाली 18 से 23 साल की मुस्लिम लड़कियों में हुआ है. बेशक यह मुस्लिम आबादी के अनुपात में कम है, लेकिन इसमें बढ़ोतरी साफ नजर आती है.

स्कूल, कॉलेज जाने वाली मुस्लिम लड़कियों में लगातार बढ़ोत्तरी

अगर उच्च शिक्षा में हिंदू लड़कियों का अटेंडेंस रेश्यो देखें तो यह 2007-08 के 13.4 प्रतिशत से बढ़कर 2017-18 में 24.3 प्रतिशत हो गया. अगर कर्नाटक की बात करें तो वहां 2007-08 में मुस्लिम महिलाओं का हायर एजुकेशन में अटेंडेंस रेश्यो 2007-08 में महज 1.1 प्रतिशत था, जो 2017-18 में बढ़कर 15.8 फीसदी पहुंच गया.क्या इस्लाम में हिजाब एक अनिवार्य प्रथा है? क्या छात्र को स्कूल यूनिफॉर्म कोड (Uniform civil code) से अधिक पहनने का अधिकार है? इन सवालों को अब हाई कोर्ट में चुनौती दी जा रही है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट नजर रखे हुए है.यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन (यूडीआईएसई) के प्रारंभिक और माध्यमिक शिक्षा के आंकड़ों के अनुसार, राष्ट्रीय स्तर पर, उच्च प्राथमिक (कक्षा 5 से 8) में लड़कियों के कुल नामांकन में मुस्लिम नामांकन का हिस्सा 2015-16 में 13.30 प्रतिशत से बढ़कर 14.54 हो गया है.

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कर्नाटक में यह 15.16 फीसदी से बढ़कर 15.81 फीसदी हो गया. धार्मिक और सामाजिक समूहों में लड़कियों और महिलाओं के नामांकन में यह वृद्धि हुई है. हम इसे राज्यों में देख रहे हैं, शिक्षा गैर-लाभकारी के एक शीर्ष विशेषज्ञ ने कहा, जो प्राथमिक रूप से स्कूली शिक्षा के क्षेत्र में काम करता है. हिंदू हो या मुस्लिम, सिख हो या ईसाई, लड़कियां और युवतियां देश भर में अपने परिवारों सहित कई स्तरों पर संघर्ष कर रही हैं.

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अगर हम मुस्लिम महिलाओं की उच्च शिक्षा पर इसके प्रभाव को देखें, तो यह अनुमान लगाना जल्दबाजी होगी.योजना आयोग के पूर्व सचिव एन सी सक्सेना ने कहा कि वह मौजूदा बहस में कड़े रुख से चिंतित हैं. मुस्लिम महिलाओं को हिजाब पहनने का नैतिक और कानूनी अधिकार है, लेकिन यह एक बुरी रणनीति है क्योंकि इससे समुदाय के बाहर ध्रुवीकरण और पूर्वाग्रह पैदा होगा जो उन्हें कई तरह से प्रभावित करेगा. वहीं दिल्ली विश्वविद्यालय में शिक्षा की प्रोफेसर पूनम बत्रा ने कहा कि स्कूलों या कॉलेजों में जाने से लड़कियों का सशक्तिकरण होगा. यह शिक्षा ही है जो युवा महिलाओं को यह समझने में सक्षम बनाती है कि कैसे एक हिजाब या घूंघट पितृसत्ता के प्रतीक हैं. स्कूल यूनिफॉर्म के नियमों का पालन करने के नाम पर उन्हें शिक्षा से वंचित करना क्या पुरानी सोच की ओर वापस लौटना है? पूनम बत्रा ने सवाल किया.

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