सनातन धर्म में कभी भी कोई भी त्योहार बिना वजह नहीं होता।सूर्य देव दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर जाते हैं। मकर राशि में प्रवेश करते हैं। ये समय सभी ग्रहों, राशियों के लिए महत्वपूर्ण होता है। इस समय किया गया दान ग्रह चाल को वर्ष भर के लिए सुधार देता है। विशेषकर काले तिल और काली उड़द का दान। काले तिल और काली उड़द की दाल का संबंध ज्योतिष शास्त्र में सीधे तौर पर शनि ग्रह से बताया गया है। शनि ग्रह की चाल अनुरूप चले इसके लिए लोग प्रत्येक शनिवार को शनिदेव पर सरसों का तेल और काले तिल अर्पित करते हैं।

इसमें काली उड़द की दाल भी शामिल की जाती है। मान्यता के अनुसार सूर्य देव उत्तरायण होकर अपने पुत्र शनि देव से भेंट करने जाते हैं। इसलिए शनिदेव की प्रसन्नता के लिए काले तिल और काली उड़द का दान किया जाता है। ऐसा करने से सूर्य देव की कृपा भी प्राप्त होती है।
काले तिल से जुडी शनिदेव और सूर्यदेव की पौराणिक कथा
सूर्य देव को शनिदेव का पिता पौराणिक कथा में बताया गया है। शनिदेव सूर्य की दूसरी पत्नी छाया के पुत्र हैं। शनिदेव क्योंकि जन्म से ही बहुत ही काले थे। गौरवर्ण के सूर्य देव अपने इस पुत्र से दूर बनाकर रखते थे। जिस कारण शनिदेव अपने व अपनी माता से पिता की दूरी के कारण नाराज और क्रोध में रहते थे। अपने पिता के व्यवहार से एक बार नाराज होकर शनिदेव ने सूर्य देव को कुष्ठ रोगी होने का श्राप दे दिया। अपने पिता की ऐसी दुर्दशा देखकर सूर्य के दूसरे पुत्र यमराज ने कठोर तपस्या की। जिससे सूर्य देव को कुष्ठ रोग के श्राप से मुक्ति मिल गयी। लेकिन अपने पुत्र की इस हरकत से सूर्य देव और क्रोधित हो गए और अपने क्रोध से शनिदेव का घर जला दिया। तब यमराज ने मध्यस्थता कर अपने भ्राता और पिता के बीच सुलह करवायी।

जिसके बाद सूर्य देव ने अपने पुत्र शनिदेव का क्षमा प्रदान की और मकर संक्रांति पर अपने पुत्र के घर गए। घर में जाकर देखा तो वहां सबकुछ जलकर खाक हो चुका था, सिर्फ काले तिल ही सही बचे थे। शनिदेव ने तब उन्हीं काले तिल से अपने पिता का पूजन किया। सूर्यदेव ने अपने पुत्र से प्रसन्न होकर आशीर्वाद दिया कि जो भी मकर संक्रांति पर काले तिल से मेरा पूजन करेगा उस पर शनि की कृपा रहेगी।